दिसंबर की साहित्य अमृत में मेरी कहानी "नई सुबह"
"काँच के अंदर झाँकने से किताब पढ़ने को नहीं मिल जाएगाI" चाय की गुमटी से बापू गुस्से से चीखे जो लाइब्रेरी के पास ही बनी हुई थीI
छोटू पर इस बात का कोई असर नहीं हुआI वह चेहरे से बारिश की बूँदें पोंछता हुआ शीशे के अंदर देखता रहाI
अंदर का दृश्य उसके लिए किसी स्वप्न लोक से कम नहीं थाI
उसी के हमउम्र बच्चे, ढेर सारी किताबें, एक तरफ बड़ा सा पीला शेर, जिस पर छोटे बच्चे किताबें रखकर पढ़ रहे थे और दूसरी तरफ़ एक आदमी बच्चों को एक किताब से कुछ पढ़कर सुना रहा थाI
सड़क पर बैठा छोटू, बच्चों के मुस्कुराने और उदास होने से अपने मन में फ़िर एक नई कहानी बुन रहा थाI
तभी उसे बापू की आवाज़ आई-"जल्दी से तीन चाय लाइब्रेरी में देकर आI"
छोटू के मानों पंख लग गएI ढीली नेकर को ऊपर कर, पेट पर फटी बनियान के छेद को छुपाते हुए, वह चाय की गुमटी की ओर दौड़ाI
बापू ने चाय के गिलास और केतली पकड़ाते हुए छोटू से कहा-"बारिश, धूप और ठण्ड में भी सड़क पर बैठा शीशे के बाहर से झाँककर किताबें देखता रहता हैI तू जानता है कि मेरे पास तुझे स्कूल भेजने के पैसे नहीं हैI"
पर तब तक तो छोटू लाइब्रेरी की ओर तेज क़दमों से चल पड़ा थाI काँच का दरवाज़ा खोलते ही हमेशा की तरह वह मुस्कुरा उठाI
ललचाई नज़रों से रंगबिरंगी पुस्तकों को देखता हुआ, वह वहाँ पर बैठे लोगो को चाय देने लगाI
चाय का गिलास पकड़ते हुए शर्मा जी उससे बोले-"काँच के बाहर से झाँका करते हो, अँदर आ जाया करोI"
छोटू का गला भर आयाI डबडबाई आँखों से दो बूँद आँसूं फ़र्श पर गिर पड़ेI छोटू जानता था कि सिर्फ़ शर्मा जी ही है, जो उससे अच्छे से बात करते हैI बाकी के लोग तो गिलास पकड़ते हुए भी उसका हाथ छूने से बचते हैI
तभी शर्मा जी उससे बोले-"बारह साल तक के बच्चों के लिए कहानी प्रतियोगिता हैI कोई भी बच्चा भाग ले सकता हैI कल दस बजे आ जानाI"
एक पल को छोटू की आँखें ख़ुशी से चमकी पर दूसरे ही पल उसे याद आया कि उसे तो लिखना ही नहीं आताI
छोटू ने चुपचाप चाय के खाली गिलास उठाये और किताबों की ओर ताकता हुआ चल पड़ाI
वह दौड़ता हुआ अपनी चाय की गुमटी पर पहुँचा और गुमटी के पीछे की दीवार पर सिर टिकाकर फूट-फूट कर रोने लगाI
बापू उसका रोना सुनकर दौड़ते हुए आये और घबराकर उसे अपनी गोद में उठा लियाI
सिसकियों के बीच लाल आँखों से छोटू ने उन्हें पूरी बात कह डालीI
बापू सिर पकड़कर मिट्टी पर ही पसर गएI आज पहली बार अपनी बेबसी और लाचारी पर वह छोटू के गले लग कर रो रहे थेI
सारी रात छोटू कहानियाँ बुनता रहा, मिटाता रहाI बापू भी सूनी आँखों से छत ताकते हुए सारी रात जागते रहेI
दूसरे दिन सुबह छोटू चुपचाप एक पत्थर पर बैठा हुआ थाI
बापू से उसका दर्द देखा नहीं जा रहा थाI
वह बोले-"हम दोनों लाइब्रेरी में चाय देकर आते हैI"
छोटू ने ना में सिर हिला दियाI
पपड़ी हुए होंठ, कुम्हलाया हुआ चेहरा और पतले दुबले छोटू को देखकर बापू का कलेजा रो उठाI
उन्होंने छोटू का हाथ पकड़ते हुए कहा-"चल, देखकर तो आते है, किसे इनाम मिला?"
छोटू किसी तरह खुद को घसीटता हुआ बापू के पीछे चल पड़ाI
बापू ने लाइब्रेरी के अँदर पहुंचकर सबको नमस्ते किया और एक कोने में खड़े हो गएI
तभी शर्मा जी उनकी तरफ़ लगभग भागते हुए आये और छोटू से बोले-"तुमसे कहा था ना, दस बजे आना, अभी ग्यारह बज रहे हैI"
छोटू बापू के पीछे छिपता हुआ रूंधे गले से बोला-"मुझे लिखना नहीं आताI"
शर्मा जी उसका हाथ पकड़कर आगे खींचते हुए बोले-"बोलना तो आता है ना..यहाँ कहानी बोलनी हैI अब वह बच्चा जैसे ही अपनी जगह पर बैठे तुम जाकर एक कहानी बोल देनाI"
छोटू की आँखों के सामने हज़ारों कहानियाँ नाच उठी, जो उसने शीशे के बाहर से ताकते हुए सोची थीI
वह मंत्रमुग्ध सा आगे बढ़ा और उसने अपनी ही सच्चाई को एक कहानी बनाकर बोलना शुरू कियाI
कहानी खत्म करने के बाद उसने सबकी ओर देखाI
सभी एकटक उसी को देख रहे थेI
छोटू का ध्यान अब जाकर, अपनी कई जगह से घिसी हुई शर्ट, घुटनों तक झूलती नेकर और नीली बद्दी की चप्पल पर गयाI
वह सिर झुकाकर जैसे ही चलने को हुआ, तालियों की गड़गड़ाहट से हाल गूँज उठाI छोटू के कदम रुक गए और उसने सकुचाते हुए शर्मा जी की ओर देखाI
शर्मा जी ने भावातिरेक में उसे गोदी में उठा लिया और बोले-"क्या अपना प्रथम पुरस्कार बिना लिए ही चले जाओगे?"
खन्ना मैडम मुस्कुराते हुए बोली-"दो हज़ार का इनाम हैI अब तुम भी स्कूल जा सकोगेI"
छोटू शर्मा जी के गले लगकर ज़ोरो से रो पड़ा, पर इन आँसुओं में कई इंद्रधनुषी रंग झिलमिला रहे थे, जो उसके लिए ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये थे और दूर खड़े बापू ..वह बार-बार अपने कुर्ते की आस्तीन से आँखें पोंछते हुए मुस्कुरा रहे थेI

Comments

Popular posts from this blog