दियों की दिवाली


"पापा, आज तो छोटी दिवाली है ना!" मोनू ने गेंद उछालते हुए पूछा
"हाँ, मैं अभी  पास वाली मैं सारा सामान लेकर आता हूँI" पापा ने प्यार से कहा
"आपको पता है,मेरे सारे दोस्त बहुत सुन्दर सुन्दर बिजली से जलने वाली झालरें और बड़े बड़े सुन्दर सुन्दर बल्ब लाने की बात कर रहे थेI"
पापा बोले-"बिजली की झालर भी भला कहीं मिट्टी के दीयों का मुकाबला कर सकती है?"
"नहीं पापा, हम तो झालर ही लाएँगेI" मोनू ने लड़ियाते हुए कहा  
पापा ने मोनू को गोद में बैठाते हुए कहा-"पर हम लोग इस साल मिट्टी के दीयों से घर सजायेंगे और कंदील लाएँगेI"
"नहीं पापा, आपने पिछले साल भी ऐसा ही किया था और फ़िर मेरे दोस्तों ने मेरा बहुत मज़ाक उड़ाया थाI" मोनू पापा की गोद से उतरता हुआ बोला
"पर..." पापा जैसे ही कुछ कहने को हुए, मोनू भाग खड़ा हुआ
पापा को समझ में नहीं रहा था कि वह मोनू को कैसे समझाएँI
उधर मोनू दौड़ता हुआ अपने दोस्त रानू के घर जा पहुँचाI
रानू अपनी मम्मी के साथ बैठा हुआ था और उसके पास में ढेर सारे रंग बिरंगे डिब्बे रखे हुए थेI
"अरे वाह, इतने सारे पटाखे खरीद लिए तूने?" रानू ने डिब्बों की ओर देखते हुए कहा
"नहीं बेटा, इसमें तो बिजली वाली झालरें हैI" उसकी मम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा
"अरे वाह, आंटी, मुझे भी रंगबिरंगी जलती बुझती बिजली वाली झालरें बहुत पसंद हैI"
पास ही की कुर्सी पर रानू के दादाजी बैठे थेI
वह हँसते हुए बोले-"हमारे समय में भला कहाँ थी ये सब झालरें वालरें, हम तो घरवालों के साथ जब दिवाली का सामान खरीदने जाते थे तो ढेर सारे मिट्टी के दिए लेकर आते थेI"
"ओह! पर मिट्टी के दिये जलाने में तो बड़ी मेहनत लगती है ना?" रानू ने मासूमियत से पूछा
"बेटा, वो ख़ुशी अब मैं तुम्हें कैसे बताऊँ, एक एक दिये को पहले पानी में डुबोना, फ़िर मिट्टी की सुगंध को महसूस करना, फ़िर उन्हें सुखाना...
"हाँ, दादाजी फ़िर उनमें रूई की पतली बाती डालकर तेल डालना..." मोनू ने बीच में ही कहा
"तुम तो बड़े होशियार बच्चे होI" दादाजी ने जब मुस्कुराते हुए कहा तो मोनू अपनी तारीफ़ सुनकर खुश हो गया
"पर मुझे तो रंगीन झालरें ही पसंद है, हरे पेड़ के ऊपर नन्हें हरे छोटे छोटे बल्ब, गुलाबी दिवार के ऊपर जगमग करती गुलाबी रौशनी, इसलिए मैंने तो जिद करके इतनी सारी झालरें खरीदी हैI" रानू सारे पैकेट फटाफट खोलता हुआ बोला 
तभी रानू का बड़ा भाई एक बड़ा सा थैला हाथ में पकड़े हुए आया हँसते हुए बोला-"पटाखे ले लो पटाखेI"
रानू और मोनू सब भूलकर पैकेट की ओर दौड़ पड़ेI
चकरी, अनार और फुलझड़ी देखते हुए और उनके बारें में बातें करते हुए कब शाम हो गई उन्हें पता ही नहीं चलाI
"मोनू, तुम भी हमारे साथ पटाखे फोड़ने के लिए जानाI" भैया ने मोनू से कहा
"नहीं भैया, पिछले साल पटाखों के धुएँ से मेरी आँखों में बहुत जलन हुई थी और आँखें भी लाल हो गई थीI"
"अरे, मेरी आँखें तो दर्द के कारण खुल ही नहीं रही थी इसीलिए तो भैया इस बार "ईको फ्रेंडली पटाखे" लेकर आये हैI"
"ठीक है भैया, मैं भी घर पर झालरें लगाकर आता हूँI" कहते हुए मोनू अपने घर की ओर दौड़ पड़ा 
पर जब मोनू घर पहुँचा तो पापा और मम्मी बातें करते हुए मिट्टी के दियों में तेल भर रहे थेI
"पापा, आप मेरे इतने मन करने के बाद भी झालरें नहीं लायेI अब हमारा घर रानू के घर की तरह नहीं जगमगायेगाI" मोनू ने उदास होते हुए कहा
"क्यों नहीं जगमगायेगाI अभी हम इन सारे दीयों को कतारों में सजा देंगेI" कहते हुए मम्मी मुस्कुरा दी
मोनू को दिये बिलकुल भी अच्छे नहीं लग रहे थेI वह गुस्सा होते हुए कुर्सी पर पसर गयाI
देखते ही देखते लाल सूरज बादलों के पीछे छुप गया और अँधेरा छाने लगाI
एक के बाद एक करके सबके घरों की झालरें जगमगाने लगीI
दिवाली वाली ठंडी हवा भी मोनू को महसूस होने लगीI
तभी पापा और मम्मी भी एक बाद एक करके दिये जलाने लगेI पता नहीं क्यों पर मोनू को अचानक ही जलते हुए दिए बेहद खूबसूरत लगने लगेI
कुछ ही देर में छत से लेकर छज्जे तक बहुत सारे दियों की लौ हवा के साथ साथ नाचने लगीI
मोनू हँस दिया और पापा का हाथ पकड़कर खड़ा हो गयाI
तभी पास के बिजली के खम्बे में जोर से धमाका हुआ और सारे घरों की बत्ती गुल हो गईI
"ओह, शायद जरुरत से ज़्यादा ट्रांसफॉर्मर लोड नहीं ले पाया होगाI" पापा ने खंबे की ओर देखते हुए कहा
मोनू ने देखा कि सारे घर अँधेरे में डूब गए थेI किसी किसी घर में एकाध दिये टिमटिमाता हुआ दिख रहा थाI
उसने पापा और मम्मी की तरफ़ देखाI उनका चेहरा चमकते हुए दियों के बीच बहुत अच्छा लग रहा थाI
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई और मोनू हमेशा की तरह सबसे पहले दरवाज़ा खोलने के लिए दौड़ाI
सामने ही रानू खड़ा थाI
मोनू बोला-"आओ रानू..."
"कुछ दिए मिलेंगे क्या?" रानू ने धीरे से कहा
"कुछ क्यों, बहुत सारे मिलेंगेI" कहते हुए पापा ने हँसते हुए कहा   
रानू मुस्कुरा दिया और थोड़ी ही देर बाद ट्रांसफॉर्मर ठीक होने के बाद भी मोनू और रानू के साथ साथ सबके घरों में मिट्टी के नन्हें दिये उजाला बिख़ेर रहे थेI

(published in November issue of Balhans)

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