"दादाजी और अप्रैल फूल"


१ अप्रैल आने वाला था और शैतानियों का पिटारा गप्पी के दिमाग में रह रह कर कुलबुला रहा थाI होली के आसपास से ही उसे अप्रैल का महीना याद आने लगता था और वह आस पास के सभी लोगो को घूर घूर कर देखा करता था कि वह किसे "अप्रैल फूल" बना सकता हैI
कई बार उसका आइडिया सही नहीं बैठ पाया था और उलटे उसकी ही धुनाई हो गई थीI पिछले साल वह मोहल्ले के सबसे पतले दुबले शर्मा अंकल के पास उन्हें अप्रैल फूल बनाने गया था और कीचड़ में लथपथ लौटा थाI
दरअसल उसने ये देखा ही नहीं था कि शर्मा अंकल सिर्फ़ शरीर से कमजोर थे, अक्ल की मात्रा उनमें भरपूर थी इसलिए वह अपनी चारपाई गड्ढे के पास बिछाकर बैठे थे जो घास फूस से ढकी थी
और जैसे ही गप्पी ने चिल्लाकर कहा-"आपका कुत्ता, मोती बाहर नाली में गिर गया है तो शर्मा अंकल जैसे बहरे हो गये थेI
वहीं चारपाई से पूछने लगे-"कौन गिर गया है कहाँ गिर गया है?"
"अरे, आपका कुत्ता मोती..."कहते हुए गप्पी उनकी ओर तेजी से बढ़ाI
और देखते ही देखते वह कीचड़ वाले गड्ढे में सीधा खड़ा हुआ थाI
शर्मा अंकल के साथ-साथ उनके आसपड़ोस वाले भी खिलखिला रहे थे और वह दुष्ट मोती भी पूँछ हिलाते हुए भौंक रहा थाI
"इसका मतलब कि आप जानते थे कि मोती आपके घर में हैI"
"और क्या...मेरा मोती मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाताI" कहते हुए शर्मा अंकल ने मोती को प्यार से गोदी में उठा लिया और बेचारे गप्पी को खुद ही जैसे तैसे गड्ढे से बाहर आना पड़ा
इसलिए इस साल किसी को भी अप्रैल फूल बनाने से पहले गप्पी बहुत सावधानी से काम ले रहा थाI
आख़िर बहुत सोचविचार के बाद उसके दिमाग में एक आइडिया आ ही गयाI
वह सीधा फूलों की दुकान पर गया और बोला-"मुझे दस गुलाब के फूल चाहिएI"
फूल वाला हँसता हुआ बोला-"गप्पी, आज किसको बेवकूफ़ बनाने जा रहे होI"
गप्पी को लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गईI
इसलिए वह बोला-"आज मेरे दादाजी का जन्मदिन है और उन्हीं के लिए फूल ले जा रहा हूँI"
"अरे वाह, दादाजी का जन्मदिन हैI" फूल वाला खुश होते हुए बोला
अब जाकर गप्पी को ध्यान आया कि जबसे दादाजी ने फूल वाले को खून देकर उसकी जान बचाई थी तब से फूल वाला उन्हें भगवान की तरह मानता थाI
उसने सोचा कि जन्मदिन वाली बात मना कर दे पर अब तो बात मुँह से निकल चुकी थी और अब कुछ नहीं हो सकता था इसलिए गप्पी तुरंत वहां से चल दियाI
फूल वाला चिल्लाता रहा कि अरे, पैसे नहीं चाहिए, मेरी तरफ से दादाजी को ये गुलाब दे देना पर गप्पी ने पीछे मुड़कर देखा तक नहींI
कहाँ तो गप्पी ने सोचा था कि फूल में नकली मधुमक्खी रखकर सबको डराएगा और जब सब घबराकर भागेंगे तो वह अप्रैल फूल कहकर खूब हँसेगाI
पर अब दादाजी वाला आइडिया उसे ज़्यादा बढ़िया लगाI
वह तुरंत आस पड़ोस के सभी लोगो के घर गया और एक घंटी बजाकर फूल के साथ एक पर्ची रख आया, जिस पर लिखा था "आज मेरे दादाजी का जन्मदिन है ...गप्पी"
उसने सोचा था कि जब कोई पूछेगा तो वह मासूमियत से कह देगा कि उसने तो ये लिखा ही नहीं और फिर खूब मज़ा आएगाI
दस घरों में फूल और पर्ची रखते हुए वह बहुत थक गया और घर जाकर सो गयाI
दोपहर में जब वह उठा तो दादाजी कोई किताब पढ़ रहे थेI
वह उसे देखते ही बोले-"आज तो एक अप्रैल है और तू इतना शाँत कैसे बैठा है या फिर कोई कांड पहले ही करके आ चुका हैI"
"हेहेहेहे ...मैं तो इतना सीधा सादा बच्चा हूँ और वैसे भी आज मुझे आपके साथ शाम को पार्क घूमने जाना हैI"
"ठीक है, मैं तुझे तेरी मनपसंद आइसक्रीम भी खिलाऊँगा पर तू उसके पहले मेरा कुरता प्रेस वाले के यहाँ से ले आनाI"
आइसक्रीम की बात सुनते ही गप्पी ने तुरंत मम्मी की ओर देखा पर वह पापा से बात करने में इतनी बिज़ी थी कि उन्होंने दादाजी की आइसक्रीम वाली बात सुनी ही नहीं थीI
गप्पी ने चैन की साँस ली और तुरंत प्रेस वाले की दुकान की ओर चल पड़ाI
दुकान पर पहुँचकर गप्पी बोला-"दादाजी का कुरता दे दीजियेI"
"ओह, वो तो घर ही रह गयाI मैं अभी घर से मँगवाकर फटाफट प्रेस कर देता हूँI" कहते हुए प्रेस वाले ने अपने बच्चे को घर कुरता लाने भेज दियाI
बच्चे का इंतज़ार करते-करते बैठे बैठे गप्पी को नींद आने लगीI
वह ऊबता हुआ बोला-"पूरा एक घंटा हो गयाI कब आएगा वो कुरता लेकर?"
"अरे, लगता है, उसकी माँ ने उसे ट्यूशन पढ़ने भेज दिया होगाI तुम रुको मैं अभी खुद लेकर आता हूँI" कहता हुआ प्रेस वाला वहाँ से चला गया
बहुत देर के बाद भी जब प्रेस वाला नहीं आया तो गप्पी का मन हुआ कि वह उठकर चला जाएI पर बहुत सारे कपड़ों का ढेर मेज पर लगा हुआ था और अगर प्रेस वाले के कपड़े चोरी हो जाते तो सब गलती उसी की मानी जातीI इसलिए बेचारा गप्पी चुपचाप वहाँ बैठकर प्रेस वाले का इंतज़ार करता रहाI
करीब दो घंटे बाद हाँफता काँपता प्रेस वाला आया और बोला-"अरे, तुम्हारे दादाजी का कुरता गलती से दूसरे के कपड़ों में चला गया थाI पूरे मोहल्ले के सारे घर देखकर आया हूँ तब जाकर ये कुरता मिला हैI"
गप्पी को गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर प्रेस वाले की हालत देखकर वह कुछ बोल भी नहीं सका और घर चल दियाI
थका हुआ गप्पी, दरवाजे की घंटी बजाने के बाद सीढ़ियों पर बैठने ही वाला था कि दरवाज़ा खुल गयाI अंदर का दृश्य देखते ही गप्पी सन्न रह गयाI
पूरा ड्राइंग रूम फूलों से सजा हुआ था और आस पड़ोस के सभी लोग हँसी मजाक करते हुए चाय नाश्ता कर रहे थेI
दादाजी ढेर सारे बच्चों के साथ वाली चमकीली फुंदों वाली टोपी लगाकर घूम रहे थेI
तभी दादाजी ने उसे देखा और ख़ुशी से चिल्लाते हुए बोले-"मेरा गप्पी आ गया..."
गप्पी जब तक कुछ समझ पाता, दादाजी दौड़ते हुए आये और घुटनों के बल बैठते हुए उसे गले से लगा लियाI
"खुश रहो मेरे बच्चे ...आज इतने सालों में पहली बार मेरा बर्थडे किसी को याद रहा हैI" कहते हुए दादाजी भरभराकर रो पड़े
हाल में खड़े सभी लोगो की आँखें भी नम हो गईI
और गप्पी के साथ साथ उसके मम्मी-पापा को भी आज पता चला कि दादाजी का बर्थडे "एक अप्रैल" को आता हैI

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