मेरी कहानी "गोलू की राखी"
आज गोलू रूठा थाI राखी के दिन भाई रूठा तो बहन भी उसके पीछे पीछे दौड़ कर उसे मना रही थीI
सात साल का गोलू वैसे तो किसी बात पर रूठता नहीं था पर आज बात ही कुछ और थीI
मम्मी ने जब राखी की थाली तैयार की और मुन्नी को राखी पकड़ाई तो गोलू भाग खड़ा हुआI बेचारी मुन्नी राखी लेकर उसके पीछे दौड़ीI
थोड़ी देर बाद दोनों ही हाँफ गए और थक हार कर बैठ गएI
मुन्नी गोलू से सिर्फ़ एक साल ही बड़ी थी पर बड़े बुजुर्गों की तरह गोलू से बोली-"बता तो, आख़िर बात क्या है?"
"राखी देखी है अपनी!" गोलू ने गोल-गोल गाल गुस्से में फुलाते हुए कहा
"हाँ...कितनी सुन्दर तो हैI" मुन्नी चमकीले गोटे वाली राखी को निहारते हुए बोली
"पर डोरेमॉन वाली तो नहीं है नाI" गोलू ने राखी की ओर देखते हुए कहा
"तो क्या हुआ, ये भी तो कितनी सुन्दर हैI" मुन्नी ने गोलू को मनाते हुए कहा
"बस नहीं बँधवानी है बिना डोरेमॉन वाली राखी, तो नहीं बँधवानी हैI" गोलू ने कहा और दौड़ता हुआ बाहर चला गया
सामने ही किराने वाले शर्मा अंकल की दुकान थीI त्यौहार के कारण अंकल ने भी एक बड़े से बोर्ड पर ढेर सारी रंगबिरंगी और खूबसूरत राखियाँ टाँग रखी थीI
तभी गोलू की नज़र स्पाइडरमैन वाली राखी पर पड़ीI
वह मुस्कुरा उठाI उसने सोचा कि हो सकता है अंकल के पास डोरेमॉन वाली राखी भी होI
वह यह सोचकर ही बहुत खुश हो गया और तुरंत दौड़ते हुए सामने वाली दुकान पर जा पहुँचाI
अंकल ने उसे देखते ही पूछा-"अरे गोलू, अभी तक तुमने राखी नहीं बँधवाईI"
"नहीं, मैं नाराज़ हूँI मुन्नी मेरे लिए डोरेमॉन वाली राखी नहीं लाइ नाI" गोलू ने चमकीली गोटे वाली राखी को याद करते हुए कहा
"उससे क्या फ़र्क पड़ता हैI बहन तो प्यार से जो भी राखी बाँधे, उसे बँधवा लेनी चाहिएI" अंकल की दुकान पर बैठा उसी का हमउम्र लड़का बोला
गोलू ने उसे देखा तो अंकल बोल पड़े-"ये मेरा बेटा है, विशुI आज स्कूल की छुट्टी हैं ना तो मैं इसे भी अपने साथ ले आयाI"
गोलू ने मुस्कुराते हुए उससे कहा-"तुम्हारे भी ना तो टीका लगा है और ना ही राखी बँधी हुई हैI क्या तुम्हारे पास भी तुम्हारी मनपसंद राखी नहीं हैI"
"राखियाँ तो पापा की दुकान में ढेर सारी है पर मेरे कोई बहन नहीं हैI" कहते हुए विशु रुँआसा हो गया
गोलू उस लड़के की बात सुनकर सन्न रह गयाI उसकी आँखों के आगे मुन्नी का उदास चेहरा घूम गया जो सुबह से अपना नया घाघरा चोली पहनकर उसके आगे पीछे राखी लिए दौड़ रही थीI
वह तुरंत घर की ओर मुड़ाI तभी उसे कुछ ध्यान आया और वह विशु के पास जाकर बोला-"मेरी बहन से राखी बँधवाओगेI"
विशु का चेहरा ख़ुशी से खिल उठाI उसने पापा की ओर देखा तो उन्होंने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए हाँ कर दिया
तभी विशु बोला-"ये डोरेमॉन वाली राखी तो ले लोI"
गोलू हँसता हुआ बोला-"नहीं, अब मुन्नी जो राखी बाँधेगी, मैं वही बँधवाउंगाI"
"हाँ...मैं भी अपनी बहन की पसंद की ही राखी बँधवाउंगाI" कहते हुए विशु मुस्कुरा दियाI
डॉ. मंजरी शुक्ला

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