बाल किलकारी के अगस्त अंक में मेरी कहानी "राखी और चश्मे वाली पतंग"
"कितनी दूर तक जाती है ये पतंग?" आठ साल का भोला आसमान की ओर देखते हुए, अपनी आँखें चुंधियाते हुए बोला
"बहुत दूर...इतनी दूर कि अपने गाँव के साथ साथ अगल बगल के गाँव वाले भी देख लेते होंगेI" उसका दोस्त गोलू बोला
"तो फ़िर क्या मेरी दीदी भी देख लेगी?" भोला ने पतंग से नज़रे हटाकर गोलू पर गड़ा दी
अचानक पूछे गए सवाल से गोलू हड़बड़ा गया और बोला-"हाँ..हाँ...क्यों नहीं, जब पूरा गाँव देख लेता है तो तेरी दीदी भी देख लेगीI"
"पता है पूरे दो साल हो गए है, उनकी शादी को, तबसे एक बार भी राखी पर नहीं आ पाईI" भोला रुंधे गले से बोला
"तो तू क्यों नहीं चला जाता है?" गोलू ने फ़िर से पतंग को देखते हुए कहा जो अब एक लाल पतंग के बगल में उड़ रही थीI
"बाबूजी को इस समय खेत में बहुत काम रहता है और फ़िर मैं तो इतना छोटा हूँ, अकेले जा नहीं सकताI" भोला ने दुखी होते हुए जवाब दिया
"तो फ़िर, तू क्या पतंग पर चढ़कर जाएगा?" गोलू ने हँसते हुए कहा
"नहीं, मैं पतंग पर दीदी को लिखकर भेज दूँगा कि इस साल वह राखी पर ज़रूर आ जाए वरना मैं उनसे कभी बात नहीं करूँगाI"
"हाँ...ये सही है, पर पहले एक अच्छी सी पतंग खरीद कर लानी पड़ेगीI" गोलू तुरतं बोला
"नीला रंग दीदी को बहुत पसंद हैI उसी रंग की पतंग लाते हैI" भोला अपने पैरों की मिट्टी झाड़ते हुए उठ खड़ा हुआ
गोलू बोला-"पैसे है तेरे पास?"
"अरे, ये तो सोचा ही नहीं, चल दादाजी से माँग लेता हूँ वह पिताजी की तरह सौ सवाल नहीं करेंगेI" भोला मुस्कुराते हुए बोला
दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और हाथ में चप्पल पकड़कर तेजी से दौड़ लगा दीI
कुछ ही देर बाद, दोनों हाँफते हुए दादाजी के सामने बाहर बरामदे में खड़े थेI
"जल्दी से माँग पैसेI" गोलू ने धीरे से कहा
"मैं सोच रहा हूँ कि दादाजी का चश्मा भी ले लूँ?" भोला फुसफुसाया
"तू चश्में का क्या करेगा? तुझे तो सब कुछ ठीक से दिखाई पड़ता हैI" गोलू ने आश्चर्य से कहा
"अरे, दादाजी बता रहे थे कि चश्मा लगाने के बाद उन्हें आसमान के नन्हें सितारें भी आसानी से दिख जाते हैI अगर हम ये चश्मा पतंग पर चिपका दे तो पतंग मेरी दीदी को देख भी लेगी और उन्हें मेरा संदेसा भी दे देगीI"
"तू बहुत समझदार है भोला, पता नहीं पढ़ाई में ही तेरे नंबर क्यों अच्छे नहीं आते हैI" गोलू आँखें नचाता हुआ बोला
"अगर बातें खत्म हो गई हो तो काम भी बता दोI" दादाजी चश्मा उतारते हुए बोले, जो इतनी देर से उनकी खुसुरपुसुर देख रहे थे
"पतंग खरीदने के लिए पैसे चाहिएI" भोला ने दादाजी के चश्में की ओर देखते हुए कहा
"अरे वाह, अपने दोस्त के साथ मिलकर पतंग उड़ाएगाI" कहते हुए दादाजी ने कुर्ते की जेब से बीस रुपये निकालकर भोला को दे दिए और घर के अंदर चले गए
गोलू ने लपककर चश्मा उठा लिया और बोला-"जल्दी चल, वरना दादाजी पूरे गाँव में दौड़ा दौड़ा कर मारेंगेI"
फ़िर क्या था, पलक झपकते ही दोनों वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गएI
कई गली मोहल्ले पार करते हुए दोनों करीम चाचा की दुकान पर जा पहुँचेI उनकी दुकान पर ढेर सारी पतंगें करीने से सजी हुई थीI
किसी पतंग के ऊपर चाँद सितारें बने थे तो किसी के ऊपर रंगबिरंगी नन्ही चिड़िया बनी हुई थीI
भोला और गोलू हैरत से सभी पतंगों को देख रहे थे और बीच बीच में एक दूसरे को देखकर आँखों ही आँखों में तारीफ़ भी कर रहे थेI तभी उनकी नज़र एक नीले रंग की पतंग पर पड़ी जिसके ऊपर दो बड़ी बड़ी आँखें बनी हुई थीI
भोला और गोलू के चेहरे ख़ुशी से चमक उठेI
भोला ने करीम चाचा से कहा-"वो वाली पतंग और माँझा दे दीजियेI"
करीम चाचा के पतंग और माँझा पकड़ाते ही दोनों के पैरों में मानों पंख लग गएI
कई सड़क पार करने के बाद, दोनों एक दीवार के कोने में बैठ गएI
भोला ने अपनी नेकर की जेब से दादाजी का चश्मा निकालाI
गोलू डरते हुए बोला-"अगर दादाजी को पता चल गया तो तेरी तो पिटाई होगी ही वह मुझे भी नहीं छोड़ेंगे I"
"चिंता मत करI दीदी के नहीं आने पर वह मुझसे ज़्यादा दुखी है और पापा उन्हें नया चश्मा भी तुरंत बनवा देंगेI"
"ठीक है, फ़िर ये काँच निकाल कर पतंग पर चिपका देI" गोलू बोला
भोला ने तुरंत जेब से गोंद निकाला और दादाजी के चश्मे के फ्रेम से काँच निकालकर पतंग पर बनी आँखों पर चिपका दिए और पतंग पर बड़े अक्षरों में लिख दिया- "दीदी,अगर इस साल राखी पर नहीं आई तो हमेशा के लिए कुट्टी...तुम्हारा प्यारा भाई भोलाI"
"चलो, सब काम हो गयाI" गोलू हँसते हुए बोला
"और इसे उड़ाएगा कौन! हमें भला पतंग उड़ाना कहाँ आता है?" भोला ने गोंद की शीशी को वापस नेकर की जेब में रखते हुए कहा
गोलू ने पतंग को घूरते हुए कहा-"मीतू दादा से अच्छी पतंग पूरे गाँव में कोई नहीं उड़ाता हैI उन्हीं के पास चलते हैI"
गोलू और भोला जानते थे कि मीतू दादा इस समय कहाँ मिलेंगे इसलिए उन्होंने सीधा मैदान की ओर दौड़ लगा दीI
मैदान में मीतू दादा माँझा लपेट रहा था और उनके बगल में ढेर सारी रंगबिरंगी पतंगें रखी हुई थीI
भोला उनके पास जाकर बोला-"मेरी ये पतंग उड़ा दो ...खूब ऊँची ...आसमान तक..."
मीतू ने गोलू और भोला को देखा और जब उसकी नज़र पतंग पर पड़ी तो वह पेट पकड़कर हँसते हुए ज़मीन पर लोट गया और ठहाका लगाते हुए बोला-"हाहाहा, चश्मे वाली पतंग...स्कूल भेज रहा है क्या इसेI"
भोला बोला-"पूरी बात तो सुनोI"
पर मीतू दादा के तो हँसते हँसते आँसूं निकल आये थेI उसका हँसना बंद ही नहीं हो रहा थाI
भोला ने देखा कि मीतू दादा चुप ही नहीं हो रहे है तो उसने उनके बगल में बैठते हुए पूरी बात बता दीI
मीतू दादा को भोला और गोलू के भोलेपन पर बहुत प्यार आया और इसलिए आँसूं पोंछते हुए वह बोला-"लाओ, मैं तुम्हारी पतंग उड़ा देता हूँI"
और देखते ही देखते मीतू दादा के सधे हुए हाथों में नीली पतंग आसमान की सैर करने लगीI
दोनों टकटकी लगाए पतंग की ओर देख रहे थे कि तभी एक बड़ी सी काली पतंग आई और नीली पतंग की डोर को काटते हुए आगे बढ़ गईI
भोला का कलेजा बैठ गयाI
वह रुआँसा होते हुए बोला-"अब दीदी कैसे आएगी!"
मीतू दादा भी सकपका गए थेI
वह प्यार से भोला के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले-"तुम्हारी पतंग ने दीदी को देख लिया होगा ना, इसलिए चली गई तुम्हारा सन्देश देने के लिएI"
"सच! तो कल दीदी आ जायेगीI" भोला उछलते हुए बोला
"हाँ...ज़रूर आ जायेगीI" कहते हुए मीतू दादा की आँखों में आँसूं छलछला उठे
भोला ओर गोलू ने एक दूसरे को कस कर गले लगा लिया और भाग खड़े हुएI
भोला घर पहुँचा तो दादा जी का चश्मा जोरों शोरों से ढूँढा जा रहा थाI मम्मी झाड़ू लिए पलंग के नीचे थी और पापा कपड़ों के ढेर के बीच में बैठे कुछ सोच रहे थेI
दादाजी बार बार कह रहे थे-"अरे, कब से कह रहा हूँ कि चश्मा बाहर रखा था तो पता नहीं सब मिलकर घर के अंदर क्यों ढूंढ रहे हैI"
भोला पापा के पास जाकर बोला-"दादाजी तो कई दिनों से कह रहे थे कि उन्हें अब नया चश्मा बनवाना हैI"
"हाँ...बिलकुल कहते हुए पापा तुरंत कपड़े के ढेर के निकल कर भागे और मम्मी ने झाड़ू ऐसे छोड़ दी मानों साँप पकड़े थीI"
दादाजी ने भोला के सिर पर हाथ फेरा और पापा के साथ चश्मा बनवाने के लिए चल दिएI
"कल दीदी आ रही हैI" भोला ने मम्मी से कहा
मम्मी का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा पर फ़िर कुछ सोचते हुए वह बोली-"तुझे कैसे पता?"
"बस, आप देख लेनाI" कहते हुए भोला उछलता कूदता गिलहरी के पीछे भागने लगा
रात भर भोला सपनें में दीदी से कभी राखी बँधवाता तो कभी मिठाई खाता और कभी गोलू के साथ पतंग उड़ाताI
सुबह जल्दी से नहा धोकर भोला तैयार होकर दीदी का रास्ता देखना लगाI
देखते ही देखते दोपहर हो गईI मम्मी, पापा और दादा ने उसे समझाने की बहुत कोशिश करी कि दीदी किसी कारण से इस साल भी नहीं आ पाई होगी पर भोला था था कि दरवाज़े पर टकटकी लगाए बैठा थाI
तभी गोलू माथे पर बड़ा सा लाल रंग का तिलक लगाए और हाथ में बड़ी सी चमकीली राखी बाँधे आया और बोला-"अरे, दीदी से अब तक राखी नहीं बँधवाई तूने?"
"दीदी नहीं आई गोलू... दीदी नहीं आईI" कहते हुए भोला बुक्का फाड़कर रो पड़ाI
मम्मी भी अपनी रुलाई रोकती हुई घर के अंदर चली गईI
तभी दरवाज़े से आवाज़ आई-"तो फ़िर दरवाज़े पर कौन खड़ा है!"
भोला ने दरवाज़े की तरफ़ देखा तो सामने हँसती मुस्कुराती हुई दीदी अपनी बाँहें फैलाये खड़ी थीI
भोला दौड़ता हुआ दीदी से जाकर लिपट गया और हिचकियाँ लेते हुए बोला-"कुट्टी के डर से आ गई ना!" गोलू हँसते हुए बोला-"दीदी, अब पतंग का रास्ता मत देखनाIअब हर साल दादाजी का चश्मा थोड़ी ना तोड़ेंगेI"
और पूरी बात पता चलने पर दीदी के साथ-साथ सभी हँसते हुए लोटपोट हुए जा रहे थे जिसमें दादाजी के ठहाकों की आवाज़ सबसे ज़ोरदार थीI

Comments

Popular posts from this blog