मिठाईचोर
आज फ्रिज़ से बर्फ़ी फ़िर गायब थी और मम्मी रोज़ाना की तरह सुबह से लगातार चोरी पर लेक्चर देने के साथ ही चोर को कोसे जा रही थीI
"मैं बताये दे रही हूँ जिस चटोरे ने भी ये मिठाइयाँ चोरी की है, उसके दाँतों में कीड़े लगेंगे, देखना सारे दाँत एक एक करके झड़ जाएँगेI"
ये सुनते ही मेरी हँसी निकल गई पर जैसे ही मम्मी ने मुझे घूरकर देखा, मैं बहुत गंभीर सा मुँह बनाकर अपना होमवर्क करने लगाI
तीन-तीन नौकरों के कारण पता ये लगाना लगभग असंभव था कि आख़िर बर्फ़ी चुरा कौन रहा हैI
घर भर में ऐसी शांति थी जैसे परीक्षा हाल में हुआ करती हैI
मम्मी का सिंहनाद दुबारा गूंजा-"क्यों मुँह में दही जमा रखा है क्या सबने... बताते क्यों नहीं कि आख़िर चोरी किसने की है?"
पर हमेशा की तरह तीनों नौकर हाथ बाँधे और सिर झुकाए चुपचाप खड़े थेI
मम्मी उनके सामने किसी युद्ध पर जाने वाली सेना के सामने सेनापति की तरह तैनात खड़ी थीI
"कितनी बार कहे आपसे कि हमनें मिठाई नहीं खाईI" श्यामू काका धीरे से बोले
"और क्या, जब देखो तब हम तीनों को एक लाइनवा में खड़े करके मिठाई-मिठाई पूछत रहत होI" महाराज जी ने थोड़े गुस्से से गमछे से मुँह पोंछते हुए कहा
इन दोनों की हिम्मत देखकर पतले दुबले सोहन में भी थोड़ी ताकत आ गई और वो पूरी कोशिश करने के बाद भी इतना ही बोल सका कि हमनें तो देखी तक नहीं खाना तो दूर की बात हैI"
"नहीं खाई... तुमने नहीं खाई... इसने नहीं खाई तो क्या फ्रिज़ अपने आप मिठाई खाने लगा है, करामाती फ्रिज़ है क्या?"
मम्मी की ये बात सुनकर दादी खिलखिलाकर हँस पड़ी और पापा चिल्लाये -"अगर थोड़ी सी मिठाई किसी ने खा भी ली तो कौन सा आसमान टूट पड़ाI"
अब माहौल को गर्म देखकर मम्मी का स्वर थोड़ा नर्म हुआ और वो रुआँसी होती हुई बोली-"पर ये कितनी अजीब बात है कि हम सबके घर में रहते हुए भी कोई फ्रिज़ खोलकर मिठाई खा रहा है, मलाई भी सफ़ाचट कर रहा है, जिसका हम में से कोई भी पता नहीं लगा पा रहा हैI"
पापा कुछ सोचते हुए दादी से बोले-" माँ, क्या आपको किसी पर शक है?"
पर दादी ने हमेशा की तरह सर हिलाते हुए मना कर दियाI
पापा मेरी तरफ़ इशारा करते हुए बोले-"कहीं ये गोलू महाशय ही तो सारी मिठाई चट नहीं कर जाते है?"
"ओफ़्फ़ो, जब भी चोरी होती है तुम्हें याद दिलाना पड़ता है कि गोलू को मीठे से एलर्जी हैI ये जैसे ही मीठा खाता है, इसके लाल-लाल फुंसियाँ निकल आती हैI"
और ये कहते हुए मम्मी ने मेरे चेहरे की ओर घूरना शुरू कर दियाI
"तसल्ली ना हो रही हो तो मैग्नीफॉइंग ग्लास लेकर देख लो, क्या पता कोई लाल फुँसी दिखाई ही दे जाएI" पापा भन्नाते हुए बोले
ये सुनते ही तीनों नौकर खी-खी कर के जोरों से हँसने लगे और मम्मी बड़बड़ाती हुई किचन में चली गईI
दूसरे दिन फ़िर मम्मी नाराज़ होते हुए चिल्ला रही थीI आज उनका खीर का कटोरा कोई चट कर गया था
"पूरे पाव भर किशमिश डाली थीI" पड़ोस वाली आँटी को मम्मी अपना दुखड़ा सुना रही थीI
"मैं तो कहती हूँ कि तुम कुछ दिन घर से बाहर ही मत निकलो, फ़िर पता चल ही जाएगा कि उन तीनों में से चोर कौन है?" आँटी ने फुसफुसाकर ऐसे कहा मानों किसी सीक्रेट मिशन की जानकारी दे रही होI
"घर में हमेशा कोई ना कोई रहता है, गोलू के पापा, मैं गोलू या फिर उसकी दादी...तब भी जैसे ही कोई स्वादिष्ट चीज़ बनती है उन तीनों में से कोई ना कोई चट कर जाता हैI"
"तसल्ली रखो, एक ना एक दिन चोर पकड़ा ही जाता है..नाच ना जाने आँगन टेढ़ा.."
ऑंटी की ये आदत थी कि उन्हें वक़्त पर बोलने के लिए जब कोई मुहावरा नहीं याद आता तो वो बड़े आराम से किसी भी मुहावरे से काम चला लेतीI
मैंने हँसते हुए कहा-"नहीं ऑंटी सौ सुनार की एक लुहार कीI"
"चल भाग यहाँ से, बड़ा आया सही मुहावरा बताने वाला..इतना ही समझदार होता तो तेरे घर के चोर को अब तक ढूंढ निकालताI उस दिन तो कह रहा था कि बड़ा होकर पुलिस में जाऊँगा ..कौन लेगा तुझे पुलिस में?" कहते हुए ऑंटी गुस्से में पैर पटकते हुए वहाँ से चल दीI
मैंने मम्मी की तरफ़ देखा कि अब रही सही कसर वो पूरी कर देंगी, पर वो तो जैसे शून्य में चोर को ढूँढ रही थी, इसलिए बिना कुछ कहे कुछ सोचते हुए घर के अंदर चली गईI
पर ऑंटी की बात मुझे तीर की तरह लगी...अब तो मेरे कॅरिअर पर सवाल खड़ा कर दिया गया था, इसलिए मैंने उसी दिन कसम खा ली कि अब चाहे जो हो जाए चोर को तो मैं ढूँढ के ही रहूँगाI
मैंने सोचा इस मामले में सबसे अच्छी सलाह मुझे दादी ही दे सकती है और वो भी मुझ पर बिना गुस्सा किये, इसलिए मैं सीधे तीर की तरह उनकी तरफ़ भागा जहाँ पर वो बैठकर अस्फुट स्वर में कोई प्रार्थना कर रही थीI
"दादी...चोर को कैसे पकड़े?" मैंने धीरे से जाकर उनके कान में पूछा
दादी मेरी बात सुनकर जोरो से हँसने लगीI पोपले मुँह की वो मासूम सी हँसी मुझे बहुत भली लगी और मैं दादी को प्यार करके खेलने चला गयाI
लौटकर आया तो मेज पर मिट्टी की छोटी सी हाँडी रखी थी और घर के सारे सदस्य उसे ऐसे देख रहे थे, मानों उसमें से कबूतर निकल आएगाI
"क्या हुआ ..क्या हुआ, कोई जादू है क्या..पापा?" मैंने हाँडी के अंदर झाँकने की कोशिश करते हुए कहा
"हाँ, सच में जादू हैI तू भी सीख लेI" कहते हुए मम्मी धम्म से कुर्सी पर बैठ गई
तीनो नौकर इस बार मम्मी के बिना चिल्लाये ही चुपचाप आकर हाथ बांधकर और मुँह नीचा करके खड़े हो गएI
इस बार जो घर में सबसे ज़्यादा परेशान दिख रहा था वो थे पापा, जो बार बार हाँडी के अँदर झाँकते और कमरे में तेजी से चहलकदमी करने लगतेI
मैंने दादी से पूछा-"दादी, बोलो तो आख़िर क्या हुआ?"
पर दादी एक हाथ में तुलसी की माला पकड़े कोई मंत्र पढ़ती रही और मुस्कुरा दीI
मम्मी थकी हुई आवाज़ में बोली-" हाँडी गुलाबजामुन खा गईI आज हमारे घर जादुई हाँडी आई हैI"
खीखीखी..फिर से तीनों नौकरों के हँसने का जोरदार ठहाका गूँजाI पर ना तो आज मम्मी उन पर चिल्लाई और ना ही चीखीI
बस सिर पर हाथ टिकाए हाँडी को देखती रहीI
पाप उनके पास आकर हँसते हुए बोले-"अरे गुलाबजामुन ही तो गये हैI अब तुम इतना परेशान होगी तो कहीं तुम्हें हार्ट अटैक ना आ जाएI"
ओह..तो इसका मतलब हाँडी में गरमा गरम गुलाब जामुन आए थे..मेरा मन हुआ कि मैं चोर का मुँह नोच लूँI
एक ही तो मिठाई है, जिसे देखते ही मैं बिना गिने आठ दस मुँह में डाल लेता हूँI
मैंने चम्मच उठाया और हाँडी में से उसका शीरा पीकर ही परम आनँद की संतुष्टि पाईI
थोड़ी देर बाद माहौल शाँत होने पर सब हमेशा की तरह अपने काम में लग गएI
पर आज मैंने सोच लिया था कि मुझे जानकर ही रहना है कि इन तीनों में से आख़िर चोर कौन हैI
अब तो मेरे पास दो बातें हो गई, पहली, मेरे पुलिस इन्स्पेक्टर बनने पर सवाल खड़ा किया गया था और दूसरी, मैं किसी भी कीमत पर नुक्कड़ वाले हलवाई के नरम मुलायम गुलाबजामुन उस चोर को हड़पने नहीं दे सकता थाI
सारी रात मेरे दिमाग में एक से बढ़कर एक खुराफ़ाती विचार आते रहे और मैं सोचता रहा कि चोर को कैसे पकड़ू, पर उसमें मुझे दूसरों की भी मदद लेने की ज़रूरत पड़ सकती थीI कई घंटों की माथा पच्ची के बाद मैंने मन ही मन ठान लिया था कि अब चाहे जैसे भी हो, चोर को तो मुझे अकेले ही पकड़ना है और इसलिए आधी रात तक चोर को पकड़ने के मनसूबे बनाते हुए मैं पता नहीं कब सो गयाI
रात भर सपने में भी मैंने श्यामू काका, महाराज जी और सोहन को कई बार रंगे हाथों मिठाई खाते हुए पकड़ाI
सुबह उठकर मैंने पापा से कहा- "मेरा आज गुलाबजामुन खाने को मन कर रहा हैI"
पाप मुस्कुराकर बोले-"ठीक है, मैं शाम को लेता आऊँगा
और मैंने गर्व मिश्रित मुस्कान के साथ सब लोगो को ऐसे देखा मानों मैं उनके लिए जाल बिछा रहा हूँI
सबको एक नज़र देखने के बाद मैंने दादी को देखा जो हँस रही थीI
रात को मैं जब खेलकर लौटा तो सभी लोग आराम से फ़िर से हाँडी के चारो ओर बैठे थेI
मेरा दिल धक् से रह गयाI मैं लगभग चिल्लाते हुए बोला- "क्या आज फिर हाँडी से गुलाबजामुन गायब हो गए?"
"यहीं तो आश्चर्य है कि आखिर आज एक भी गुलाबजामुन नहीं गयाI" मम्मी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा
"लगता है, गोलू को गुलाबजामुन बेहद पसंद है ये बात चोर को पता लग गई हैI" पापा ने हँसते हुए कहा
मैंने महाराज जी की ओर देखा जो मुझे बहुत प्यार करते थे, पर उनका ध्यान भी रसोईघर से आती कूकर की सीटी की ओर था और वो हर सीटी पर मानों बैचेन होते जा रहे थेI
पापा ने उनकी परेशानी भाँपते हुए कहा- "आप तीनों अपना काम कर लीजिये और जैसे तीनों के पँख निकल आए हो, पल भर में ही वे तीनों वहाँ से भाग खड़े हुएI
फिर पता नहीं हमेशा सब कुछ भूलने वाले पापा को यही बात क्यों याद आ गई और वो मेरी तरफ़ मुँह करते हुए बोले- "गोलू, तुम सिर्फ़ एक ही गुलाबजामुन खाना, वरना तुम्हें फुँसी निकल आएँगीI
मैं मन मसोस कर रह गया,पर पापा का गुस्सा मैं अच्छी तरह जानता था, इसलिए हाँडी के सबसे बड़े गुलाबजामुन को मैंने स्वाद ले लेकर आधे घंटे तक कुतर-कुतर कर खायाI
दूसरे दिन मम्मी ने बड़ी मेहनत से पापा की पसंद के नारियल के लड्डू बनाये और सोहन से बोली-"अब लगता है कि ये भी तुम तीनों में से कोई खा जाएगाI"
उनकी बात सुनकर तीनो नौकरों पर रत्ती भर भी फ़र्क नहीं पड़ा और वे अपना काम पूर्वरत करते रहेI
इतने दिनों से दिन-रात चोरी की बात सुनते हुए जैसे अब उन पर इन सब बातों का असर होना भी बंद हो गया थाI
मम्मी उन सबको शाँत देखकर चिढ़ते हुए बोली-"अगर आज नारियल के लड्डू किसी ने चोरी से खाये तो मैं बता देती हूँ कि मुझसे बुरा कोई नहीं होगाI"
ये सुनकर महाराज जी, सोहन और श्यामू काका ने एक दूसरे की तरफ़ इस तरह देखा कि जैसे मम्मी से बुरा और कोई है ही नहींI
मैंने भी उस दिन स्कूल की छुट्टी कर दी क्योंकि चोर को पकड़ने का इससे अच्छा मौका मुझे दुबारा नहीं मिल सकता था I
मिठाई को देखकर चोर को आना ही था, इसलिए मैंने पढ़ाई का बहाना किया और दूसरे कमरें में बैठ गयाI
पर मेरे कान सारे समय मेज की तरफ़ ही लगे थे, जहाँ पर लड्डू का डिब्बा रखा थाI सारा दिन लड्डू की चौकसी करते ही बीत गई और देखते ही देखते शाम हो गईI सबने जी भरकर लड्डू खाये सिवा दादी के, क्योंकि मम्मी उनका खाना हमेशा उनके कमरें में ही पहुँचाती थी और अधिकतर घर में बनने वाले पकवानों से दादी दूर ही रहती थी,क्योंकि वो उन्हें पसँद नहीं थेI मम्मी भी कभी उन्हें कुछ नहीं कहती थी और दादी को देखकर हम सब सोचते थे कि क्या अपनी पसंद का कुछ स्वादिष्ट खाना खाने की उनकी इच्छा कभी नहीं होती होगी?" क्योंकि उन्होंने इस बारे में ना तो किसी से कुछ कहा और ना बताया धीरे-धीरे सभी उनकी तरफ़ से उदासीन होते चले गएI
घर में तमाम तरह के पकवान आते पर दादी हमेशा अपने कमरें में बैठकर दाल रोटी खाकर ही सँतोष कर लेतीI इसलिए मेज पर चाहे नारियल के लड्डू पड़े रहे या दूध मलाई दादी उनकी तरफ़ आँख उठाकर देखती भी नहीं थीI
जब सब लोग खाना खा पी चुके तो मैं भी जाकर अपने कमरे में लेट गयाI
पर नींद मेरी आँखों से कोसो दूर थीI आज तो मुझे हर हाल में पता लगाना था कि आखिर तीनों नौकरों में से मिठाई चुराता कौन हैI
रात गहराती जा रही थीI मुझे को अब बहुत बुरी तरह नींद आने लगी थी, पर मैं घुप अँधेरे में बिस्तर पर बैठा हुआ थाI
तभी मुझे किसी के चलने की आवाज़ आई और मैं ख़ुशी से झूम उठाI
अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे..अब सुबह होते ही मैं सबको बताऊँगा कि चोर कौन हैI जो काम कोई नहीं कर पाया, ना पापा, ना मम्मी और ना दादी... उसे मैंने कर दिखायाI कल पूरे मोहल्ले वालों को चोर के बारे में पता चल जाएगाI
मैं चुपके से उठा और दरवाज़े तक पहुँच गया I मैं बहुत घबरा रहा था कि कहीं सोहन, महाराज जी या श्यामू काका में से मुझे कोई देख ना लेI
मैंने दरवाज़े के पीछे से थोड़ा सा झाँका तो मेज के पास दादी खड़ी थी और अपने साड़ी के पल्लू में लड्डू बाँध रही थीI
मैंने अपनी आँखें मसली और ध्यान से देखा, मानों मैं जागती आँखों से कोई सपना देख रहा थाI वो दादी ही थीI मेरे पैर काँपने लगे और दिल जोरो से धड़कने लगाI हर धड़कन इतनी तेज हो गई कि मुझे साफ़ साफ़ सुनाई दे रही थीI मैं दादी को आवाज़ देना चाहता था पर गले से आवाज़ ही नहीं निकलीI
मैं चुपचाप खड़ा रहाI जब दादी ने सारे लड्डू अपनी साड़ी के पल्लू में बाँध लिए तो वो अपने कमरे की ओर चल दी
मैं भी दबे पाँव उनके पीछे गया और उनके कमरे के अँदर देखने लगाI
दादी ने बिस्तर पर बैठकर पल्लू में से लड्डू निकाले और पलंग के पास रखी दादाजी की तस्वीर उठाई और बोली- "देखा आपने, मुझे मेरे ही घर में चोरी करनी पड़ रही हैI" और ये कहते हुए उनकी रुलाई फूट पड़ीI
मुझे कुछ भी समझ नहीं आयाI मैं बिलकुल बुत बना वहाँ खड़ा रहाI
दादी ने आँसूं पोंछे और बोली-"सबको लगता है जैसे मैं इंसान ही नहीं हूँ मेरी कोई भावनाएँ ही नहीं है? क्या मेरा मन अच्छी स्वादिष्ट खाने को नहीं करता पर यहाँ सब अपनी मर्ज़ी का बनाते खाते हैI बाज़ार से इतनी मिठाइयाँ आती है, पर कोई मुझसे नहीं पूछताI आपको याद है आप रोज़ दूकान से लौटते समय मेरे लिए मिठाई लेकर आते थे पर अब अब..कहते हुए दादी का गला भर्रा गया और वो दादाजी की तस्वीर को चिपटाए लड्डू बिस्तर पर रखकर लेट गईI
रहरहकर दादी सिसकियाँ ले रही थी और भरे गले से दादाजी से सारे दिन की बातें बता रही थीI
मैं शर्म और ग्लानि से वही जड़ हो गयाI
मेरी आँखों से आँसूं बह निकले और मेरा शरीर काँप उठाI कितना गलत कर रहे थे हम सब सब दादी के साथI कैसे मुझसे और मम्मी पापा से इतनी बड़ी गलती हो गईI
मैं लगातार अपने आँसूं पोंछ रहा था पर दादी की सिसकियाँ जैसे मेरी आत्मा को चीर रही थीI इतनी बड़ी गलती....हम सबसे ....
मैं रोता बिलखता हुआ अपने कमरे में आकर बिस्तर पर पड़ गया और दादी की रुलाई याद करते हुए ना जाने कब सो गयाI
दूसरे ही दिन मैं दादी के पास जाकर जिद करते हुए बोला-"दादी, आज से मैं आपके साथ ही खाना खाऊँगाI"
"पर बेटा मैं तो हमेशा अपने कमरे में...."
"नहीं दादी, वरना मैं आपसे नाराज़ हो जाऊँगाI"
दादी ने मुस्कुराकर मेरे सिर पर हाथ फेरा और मेरे साथ डाइनिंग रूम में आ गईI आज दादी सबके साथ नाश्ता करते हुए बहुत खुश लग रही थीI
"दादी, आज मैं आपके साथ ही मिठाई खाऊँगाI"
"पर दादी तो मिठाई खाती ही नहीं हैI" मम्मी मुस्कुरा कर बोली
"पापा, क्या दादी ने कभी मिठाई नहीं खाई?" मैंने पापा की ओर देखते हुए पूछा
पापा ने कुछ सोचते हुए कहा- "नहीं, तेरे दादा तो रोज़ रात में दादी के लिए मिठाई लाया करते थेI"
"तो फ़िर दादी, अब आपके लिए पापा मिठाई लाया करेंगे और फिर मैं बड़ा हो जाऊँगा तो मैं लाऊँगाI" मैंने दादी का हाथ चूमते हुए कहा बोला और आँसूं भरी आँखों से पापा की तरफ़ देखा
पाप ने मम्मी की तरफ़ और जैसे सब को अचानक सब समझ में आ गया
पाप और मम्मी के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव साफ़ पढ़े जा सकते थेI
और उस शाम दादी ने भी सबके साथ बैठकर गप्प लड़ाते हुए खूब पुराने किस्से सुनाये और काजू की बर्फ़ी खाई और फ़िर ...फ़िर मिठाई कभी चोरी नहीं हुई.....
डॉ. मंजरी शुक्ला
(प्रकाशित)

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