नन्हे सम्राट के जुलाई अंक में मेरी कहानी "मूर्खिस्तान का राजा कद्दू"
बहुत समय पहले की बात हैI जब मूर्खिस्तान एक राज्य हुआ करता थाI वहाँ पर एक राजा राज्य करता था, उसका नाम तो था सुंदरसेन पर पूरी प्रजा उसे कद्दू कहकर बुलाती थी, और वह भी अपने इस नए नाम को खूब पसंद करता थाI दरअसल वह बहुत ही मोटा और गोलमटोल थाI वह था भी बहुत सीधा-साधा और हँसमुखI उसकी बस एक ही कमी थी कि वो ज़रूरत से ज़्यादा ही सीधा था और सबकी बात पर आँख मूँदकर विश्वास कर लेता थाI किसी भी काम के लिए वह किसी को कभी मना नहीं कर पाता था, इसलिए सब उसे बेवकूफ़ समझते थेI
पड़ोसी देश का राजा चतुरसेन तो उसे हमेशा ही बेवकूफ़ बनाया करता थाI वह बहुत समय से मूर्खिस्तान को हथियाना चाहता थाI इसलिए एक बार उसने एक दूत के द्वारा अपना सन्देश कद्दू के पास भिजवायाI
राजदूत कद्दू के पास गया और बोला - "अगर आप ज़मीन में बीज की जगह रंग बिरंगे तोते बो दो तो पेड़ पर ढेर सारे तोते उग जायेंगेI"
कद्दू ने उसकी बात पर हमेशा की तरह बिना सोचे समझे तुरंत भरोसा कर लियाI वो तुरंत ही जंगल की ओर चल पड़ा रंगबिरंगा तोता पकड़ने के लिएI
थोड़ी ही देर बाद उसे एक तोता उड़ता हुआ दिखा तो लगा तोते के पीछे तेजी से दौड़ने लगाI पर अपने गोल मटोल शरीर के कारण वो जल्दी ही हाँफ गया और वहीँ एक पेड़ के पास बैठ गयाI
तोते को उसकी हालत देखकर दया आ गई और वह उसके पास आकर बोला- "तुम मुझे क्यों पकड़ना चाहते हो "
कद्दू बोला-"तुम्हें जमीन के अँदर बोऊँगा, तो तुम जैसे हज़ारों रंगबिरंगे तोते मेरे बगीचे के पेड़ में उगेंगेI"
कद्दू की मूर्खता भरी बातें सुनकर तोता जोरों से हँसा और बोला -"तोते तो आसमान में ही उड़ते हैंI तुम एक काम करोI थोड़ी सी मछलियाँ बो दो..फिर वो चमकीली रंगबिरंगी मछलियाँ पेड़ पर लटकी हुई कितनी खूबसूरत लगेंगीI"
ये सुनकर कद्दू ने तुरंत अपने मन में पेड़ पर लटकी हुई मछलियों का चित्र बनाया और खुश हो गयाI
वह अपने मोटे पेट पे हाथ फेरते हुए बोला-"अरे वाह, मज़ा आ जाएगाI फ़िर तो मेरा जब भी मन होगा, मैं पेड़ से तोड़कर ढेर सारी मछलियाँ खाया करूँगाI"
और ये कहते हुए कद्दू तोते के साथ नदी की ओर चल पड़ा I वहाँ जाकर उसने कुछ कछुओं को नदी में तैरते देखकर वो तोते से बोला -"अरे, देखो तो कितने सारे कछुए!"
पर आज तो तोता पूरी मस्ती के मूड में था, इसलिए वो शरारत से बोला -" =ये कछुए नहीं हैई ये तो बहुत बड़े-बड़े सीताफल है,जो नदी पार करने के लिए हैंI"
"अरे, वाह..तब तो मैं इन्हीं पर चढ़कर जाऊँगा और मछलियाँ भी पकड़ कर ले आउंगाI"
तोता उसका मजाक उड़ाते हुए हैरत से बोला-"तुम जैसा बुद्धिमान पूरी पृथ्वी कोई दूसरा हो ही नहीं सकताI"
"हाहा...मैं बहुत ही अकलमंद हूँI"कहते हुए कद्दू जोरो से हँस पड़ा
अब मैं जरा नदी में जाकर सीताफल खाता हूँ और थोड़ी मछलियाँ पकड़ कर लाता हूँ, कहते कद्दू पानी में तैरते एक कछुए के ऊपर कूद गयाI
कछुआ अचानक हुए इस हमले घबरा गया और उसने पानी के अँदर डुबकी लगा लीI
पानी में हिचकोले खाता हुआ राजा बोला- "मुझे अब जाकर याद आया कि मुझे तो तैरना ही नहीं आता हैI"
तोता ये सुनकर जोरो से हँसाI उसने नदी के किनारे खड़ी नाव से बोला-"कद्दू को बचा लो नहीं तो वो डूब जाएगाI"
नाव ने कुछ सोचा और तुरंत नदी में उत्तर गईI वह तेजी से चलती हु सीधे के पास जाकर रूक गईI
कद्दू ने किसी तरह से उलटते पलटते हुआ नाव को पकड़ा और उस पर चढ़ गयाI
नाव इतनी देर में समझ गई थी कि कद्दू बहुत सीधा होने के कारण सबकी बातों पर आँख बंद करके भरोसा कर लेता हैं और इस कारण मुसीबत में फँसता हैंI
नाव ने सोचा-"मुझे इसे ना करना सिखाना ही पड़ेगाI"
नाव कुछ सोचकर कद्दू से बोली - "मैंने तुम्हारी जान बचाई है, इसलिए तुम्हें मुझे राजमहल ले चलना पड़ेगाI"
कद्दू पानी में डूबने के बाद इतना घबरा गया था कि उसने नाव की बात तुरंत मान ली और बोला-"मैं तुम्हें अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हूँI"
नाव किनारे पर जाकर बोली - "तुम बहुत मोटे हो और मैं तुम्हारे भार से चल नहीं पा रही हूँ, इसलिए तुम मुझे उठा कर चलोI"
कद्दू नाव से उतरते हुए गुस्से से बोला-"मैं यहाँ राजा हूँI तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये कहने की?"
नाव ने कहा-"रुक, मैं तुझे अभी मजा चखाती हूँI" और यह कहते ही नाव पलट गई
कद्दू बेचारा डगमगा के गिर पड़ा और कराह उठा - "आउच .."
"अब आ गया ना समझ में ..इसलिए मेरी हर बात माननी पड़ेगीI" नाव इठलाते हुए थोड़ी अकड़ से बोली
कद्दू ने बहुत ही बुरा मुँह बनाते हुए अपने कपड़ों से मिट्टी झाड़ी और नाव को अपने सिर पर उठा लियाI
वो जिधर से गुज़रता, लोग हँसी के मारे दोहरे हो जाते पर कद्दू बिना किसी ओर देखे हुए हाँफ़ता हुआ चुपचाप चले जा रहा थाI रास्तें में एक सफ़ेद रंग का बहुत ही खूबसूरत घोड़ा खड़ा थाI
घोड़े ने जब कद्दू को अपने सर पर नाव रखे हुए डगमगाकर चलते हुए देखा तो वह बहुत जोरो से हँसा और बोला- "कितनी अकड़ू नाव हैंI बेचारे मोटे राजा के सर पर सवार होकर चले जा रही हैI"
नाव यह सुनकर गुस्से में आगबबूला हो उठी और घोड़े से बोली-" रुको, मैं तुम्हें अभी मजा चखाती हूँI और पलक झपकते ही कद्दू घोड़े के ऊपर थाI
अब तो तमाशा देखने लायक थाI लोग हँसी के मारे बेहाल हुए जा रहे थेI रास्ते में एक शरारती बन्दर पेड़ पर बैठा केला खा रहा थाI उसे ये देखकर बड़ा मजा आयाI
वो पेड़ से कूदा और जाकर नाव के ऊपर उछलकर बैठ गयाI
घोड़ा ये देखकर गुस्से से चीखा-"मेरे ऊपर पहले ही इतना बोझा हैं और तुम कूदकर मेरे ऊपर बैठ गए होI"
बन्दर हँसते हुए बोला- "अब तो मैं तुम्हारे ऊपर से नहीं उतरूँगाI मैंने पहली बार किसी के सिर पर नाव देखी हैI"
और यह कहते हुए वह बड़े मजे से केले खाने लगाI
बेचारा कद्दू तो अब किसी को जवाब देने लायक भी नहीं रह गयाI वह जैसे तैसे कद्दू हाँफ़ता-काँपता अपने राजमहल जा पहुँचा
वहाँ जाकर घोड़े से उतरकर उसने नाव नीचे रखीI
बन्दर बोला- "वाह! राजमहल आ गयाI" और यह कहते हुए वह भी नाव से नीचे उतर गयाI
सभा में सबका हँसते हँसते बुरा हाल था, क्योंकि कद्दू के साथ-साथ नाव भी उसके सिंहासन के बगल में जा कर बैठ गई थी I
तभी राजा चतुरसेन का दूत दरबार में आया और बोला- "महाराज, एक लाख स्वर्ण मुद्राए देने पर आसमान में रहने वाला चाँद आपको मिल जाएगाI"
कद्दू ख़ुशी से उछलते हुए बोला- "फ़िर तो मजा ही आ जाएगाI मैं तो हमेशा से ही चाँद को पाने के ख़्वाब देखता रहता हूँI"
नाव ने इतनी बेवकूफ़ी भरी बात सुनकर अपना सिर पीट लियाI वह गुस्से से बोली- "कौन लाएगा आसमान से चाँद?"
दूत बोला- "जैसे ही एक लाख स्वर्ण मुद्राए दोगे, मैं चाँद दे दूँगाI"
कद्दू बोला -"अब मैं रूक नहीं सकता जल्दी से इसे एक लाख स्वर्ण मुद्राए दे दोI"
मंत्री ने दूत को स्वर्ण मुद्राओं से भरी थैली दे दीI
कद्दू बोला -"अब जल्दी से चाँद दो, मैं और इंतज़ार नहीं कर सकताI"
"क्यों नहीं..यह लीजियेI" कहते हुए उसने अपनी जेब से चाँद की तस्वीर निकालकर दे दीI
कद्दू तस्वीर को देखते ही सिंहासन से उछल पड़ा और उसने गुस्से से पूछा - "चाँद कहाँ है?"
दूत हँसते हुए बोला- "महाराज, आप किसी से भी पूछ लीजिये कि ये क्या हैं?"
और दूत ने उस तस्वीर को भरे दरबार में दिखाते हुए पूछा- "यह क्या हैं?"
सभी दरबारियों ने एक ही स्वर में उत्तर दिया- "चाँद"
बेचारा कद्दू अपना सिर पकड़कर बैठ गयाI नाव से दूत की यह मक्कारी बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं हुईI
वह दूत से बोली-"मैं तुम्हें ढेर सारा ऊन दूँगी और अगर तुम मुझे उनमें से कुछ अच्छे स्वेटर बनवा कर दे दोगे तो ये राज्य तुम्हारा .. .."
यह सुनकर कद्दू गुस्से में गोल-गोल उछलने लगा और बोला-" ओह! क्यों मेरी दुश्मन बनी हुई हो? स्वेटर तो कोई भी बना देगाI"
नाव चीखी-"चुप रहो बेवकूफ़ राजा, वरना मैं वापस तुम्हारे सिर पे चढ़कर बैठ जाऊंगीI"
कद्दू अपने सिर पर हाथ फेरते हुए घबराकर चुप हो गयाI
नाव फ़िर से दूत की तरफ मुँह करके बोली- "पर अगर तुमने ऊन में से स्वेटर बनाकर नहीं दिया तो तुम्हारा पूरा राज्य हमाराI"
दूत नाव की इस मूर्खता भरी बात पर खुश होता हुआ बोला -"हाँ, मैं अपने राजा और स्वेटर बुनने वालो के साथ दो दिन बाद ही वापस आता हूँI"
दो दिन बाद ही पड़ोसी देश का राजा चतुरसेन बहुत ख़ुशी-ख़ुशी कद्दू के दरबार में कुछ लोगो के साथ आ पहुँचाI"
चतुरसेन बोला-"जल्दी से ऊन दो..ये लोग मिनटों में स्वेटर बुन देंगेI"
नाव ने कद्दू की ओर देखा और कद्दू ने मंत्री से कहा -"जाओ, जल्दी से ऊन लेकर आओI"
थोड़ी ही देर में वहाँ ढेर सारी भेड़े मिमियाती हुई यहाँ वहाँ घूम रहीथीI
नाव इतरा कर बोली -"अब तुम इनके ऊन से स्वेटर बनाओI"
राजा के साथ-साथ सभी का मुहँ अचरज से खुला रह गयाI
राजा गुस्से से बोला- "जब तक भेड़ो से ऊन अलग करके निकाली नहीं जायेगी,ये कैसे सम्भव हैं?"
कद्दू ने मुस्कुराते हुए चतुरसेन की ओर देखा और एक भेड़ की ऊन पकड़कर बोला-"ये क्या हैं?"
सबने एक स्वर में उत्तर दिया -"ऊन "
अब तो राजा को घबराहट के मारे पसीना आ गया
वो तुरंत कद्दू के पैरों में गिर पड़ा और बोला- "मुझे माफ़ कर दोI अब मैं तुम्हें तो क्या ,कभी किसी और भी कभी मूर्ख नहीं बनाऊँगाI"
कद्दू बोला- "मुझे तुम्हारा राज्य नहीं चाहिएI तुम जाओI"
नाव अपनी पतली कमर मटका कर बोली- "पर वो हमारी एक लाख स्वर्ण मुद्राए तो वापस कर दो, जो तुमने आसमान से चाँद उतार कर ली थीI"
"मैं अपने राज्य पहुँचकर दो लाख स्वर्ण मुद्राए भिजवाता हूँI" राजा मुस्कुराते हुए बोला और चला गया
नाव बोली -"अब तुम समझदार हो गए हो, इसलिए मैं भी चलती हूँI"
कद्दू बोला-"अगर तुम चली गई तो मैं दुबारा से तोतो का पेड़ बोऊँगाI"
यह सुनते ही नाव जोरो से हँस पड़ी और उसके बाद कद्दू अपनी सबसे प्यारी दोस्त, नाव के साथ मिलकर अपना शासन सुचारु रूप से चलाने लगा ...और हाँ..अब वो ना कहना सीख गया थाI
पड़ोसी देश का राजा चतुरसेन तो उसे हमेशा ही बेवकूफ़ बनाया करता थाI वह बहुत समय से मूर्खिस्तान को हथियाना चाहता थाI इसलिए एक बार उसने एक दूत के द्वारा अपना सन्देश कद्दू के पास भिजवायाI
राजदूत कद्दू के पास गया और बोला - "अगर आप ज़मीन में बीज की जगह रंग बिरंगे तोते बो दो तो पेड़ पर ढेर सारे तोते उग जायेंगेI"
कद्दू ने उसकी बात पर हमेशा की तरह बिना सोचे समझे तुरंत भरोसा कर लियाI वो तुरंत ही जंगल की ओर चल पड़ा रंगबिरंगा तोता पकड़ने के लिएI
थोड़ी ही देर बाद उसे एक तोता उड़ता हुआ दिखा तो लगा तोते के पीछे तेजी से दौड़ने लगाI पर अपने गोल मटोल शरीर के कारण वो जल्दी ही हाँफ गया और वहीँ एक पेड़ के पास बैठ गयाI
तोते को उसकी हालत देखकर दया आ गई और वह उसके पास आकर बोला- "तुम मुझे क्यों पकड़ना चाहते हो "
कद्दू बोला-"तुम्हें जमीन के अँदर बोऊँगा, तो तुम जैसे हज़ारों रंगबिरंगे तोते मेरे बगीचे के पेड़ में उगेंगेI"
कद्दू की मूर्खता भरी बातें सुनकर तोता जोरों से हँसा और बोला -"तोते तो आसमान में ही उड़ते हैंI तुम एक काम करोI थोड़ी सी मछलियाँ बो दो..फिर वो चमकीली रंगबिरंगी मछलियाँ पेड़ पर लटकी हुई कितनी खूबसूरत लगेंगीI"
ये सुनकर कद्दू ने तुरंत अपने मन में पेड़ पर लटकी हुई मछलियों का चित्र बनाया और खुश हो गयाI
वह अपने मोटे पेट पे हाथ फेरते हुए बोला-"अरे वाह, मज़ा आ जाएगाI फ़िर तो मेरा जब भी मन होगा, मैं पेड़ से तोड़कर ढेर सारी मछलियाँ खाया करूँगाI"
और ये कहते हुए कद्दू तोते के साथ नदी की ओर चल पड़ा I वहाँ जाकर उसने कुछ कछुओं को नदी में तैरते देखकर वो तोते से बोला -"अरे, देखो तो कितने सारे कछुए!"
पर आज तो तोता पूरी मस्ती के मूड में था, इसलिए वो शरारत से बोला -" =ये कछुए नहीं हैई ये तो बहुत बड़े-बड़े सीताफल है,जो नदी पार करने के लिए हैंI"
"अरे, वाह..तब तो मैं इन्हीं पर चढ़कर जाऊँगा और मछलियाँ भी पकड़ कर ले आउंगाI"
तोता उसका मजाक उड़ाते हुए हैरत से बोला-"तुम जैसा बुद्धिमान पूरी पृथ्वी कोई दूसरा हो ही नहीं सकताI"
"हाहा...मैं बहुत ही अकलमंद हूँI"कहते हुए कद्दू जोरो से हँस पड़ा
अब मैं जरा नदी में जाकर सीताफल खाता हूँ और थोड़ी मछलियाँ पकड़ कर लाता हूँ, कहते कद्दू पानी में तैरते एक कछुए के ऊपर कूद गयाI
कछुआ अचानक हुए इस हमले घबरा गया और उसने पानी के अँदर डुबकी लगा लीI
पानी में हिचकोले खाता हुआ राजा बोला- "मुझे अब जाकर याद आया कि मुझे तो तैरना ही नहीं आता हैI"
तोता ये सुनकर जोरो से हँसाI उसने नदी के किनारे खड़ी नाव से बोला-"कद्दू को बचा लो नहीं तो वो डूब जाएगाI"
नाव ने कुछ सोचा और तुरंत नदी में उत्तर गईI वह तेजी से चलती हु सीधे के पास जाकर रूक गईI
कद्दू ने किसी तरह से उलटते पलटते हुआ नाव को पकड़ा और उस पर चढ़ गयाI
नाव इतनी देर में समझ गई थी कि कद्दू बहुत सीधा होने के कारण सबकी बातों पर आँख बंद करके भरोसा कर लेता हैं और इस कारण मुसीबत में फँसता हैंI
नाव ने सोचा-"मुझे इसे ना करना सिखाना ही पड़ेगाI"
नाव कुछ सोचकर कद्दू से बोली - "मैंने तुम्हारी जान बचाई है, इसलिए तुम्हें मुझे राजमहल ले चलना पड़ेगाI"
कद्दू पानी में डूबने के बाद इतना घबरा गया था कि उसने नाव की बात तुरंत मान ली और बोला-"मैं तुम्हें अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हूँI"
नाव किनारे पर जाकर बोली - "तुम बहुत मोटे हो और मैं तुम्हारे भार से चल नहीं पा रही हूँ, इसलिए तुम मुझे उठा कर चलोI"
कद्दू नाव से उतरते हुए गुस्से से बोला-"मैं यहाँ राजा हूँI तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये कहने की?"
नाव ने कहा-"रुक, मैं तुझे अभी मजा चखाती हूँI" और यह कहते ही नाव पलट गई
कद्दू बेचारा डगमगा के गिर पड़ा और कराह उठा - "आउच .."
"अब आ गया ना समझ में ..इसलिए मेरी हर बात माननी पड़ेगीI" नाव इठलाते हुए थोड़ी अकड़ से बोली
कद्दू ने बहुत ही बुरा मुँह बनाते हुए अपने कपड़ों से मिट्टी झाड़ी और नाव को अपने सिर पर उठा लियाI
वो जिधर से गुज़रता, लोग हँसी के मारे दोहरे हो जाते पर कद्दू बिना किसी ओर देखे हुए हाँफ़ता हुआ चुपचाप चले जा रहा थाI रास्तें में एक सफ़ेद रंग का बहुत ही खूबसूरत घोड़ा खड़ा थाI
घोड़े ने जब कद्दू को अपने सर पर नाव रखे हुए डगमगाकर चलते हुए देखा तो वह बहुत जोरो से हँसा और बोला- "कितनी अकड़ू नाव हैंI बेचारे मोटे राजा के सर पर सवार होकर चले जा रही हैI"
नाव यह सुनकर गुस्से में आगबबूला हो उठी और घोड़े से बोली-" रुको, मैं तुम्हें अभी मजा चखाती हूँI और पलक झपकते ही कद्दू घोड़े के ऊपर थाI
अब तो तमाशा देखने लायक थाI लोग हँसी के मारे बेहाल हुए जा रहे थेI रास्ते में एक शरारती बन्दर पेड़ पर बैठा केला खा रहा थाI उसे ये देखकर बड़ा मजा आयाI
वो पेड़ से कूदा और जाकर नाव के ऊपर उछलकर बैठ गयाI
घोड़ा ये देखकर गुस्से से चीखा-"मेरे ऊपर पहले ही इतना बोझा हैं और तुम कूदकर मेरे ऊपर बैठ गए होI"
बन्दर हँसते हुए बोला- "अब तो मैं तुम्हारे ऊपर से नहीं उतरूँगाI मैंने पहली बार किसी के सिर पर नाव देखी हैI"
और यह कहते हुए वह बड़े मजे से केले खाने लगाI
बेचारा कद्दू तो अब किसी को जवाब देने लायक भी नहीं रह गयाI वह जैसे तैसे कद्दू हाँफ़ता-काँपता अपने राजमहल जा पहुँचा
वहाँ जाकर घोड़े से उतरकर उसने नाव नीचे रखीI
बन्दर बोला- "वाह! राजमहल आ गयाI" और यह कहते हुए वह भी नाव से नीचे उतर गयाI
सभा में सबका हँसते हँसते बुरा हाल था, क्योंकि कद्दू के साथ-साथ नाव भी उसके सिंहासन के बगल में जा कर बैठ गई थी I
तभी राजा चतुरसेन का दूत दरबार में आया और बोला- "महाराज, एक लाख स्वर्ण मुद्राए देने पर आसमान में रहने वाला चाँद आपको मिल जाएगाI"
कद्दू ख़ुशी से उछलते हुए बोला- "फ़िर तो मजा ही आ जाएगाI मैं तो हमेशा से ही चाँद को पाने के ख़्वाब देखता रहता हूँI"
नाव ने इतनी बेवकूफ़ी भरी बात सुनकर अपना सिर पीट लियाI वह गुस्से से बोली- "कौन लाएगा आसमान से चाँद?"
दूत बोला- "जैसे ही एक लाख स्वर्ण मुद्राए दोगे, मैं चाँद दे दूँगाI"
कद्दू बोला -"अब मैं रूक नहीं सकता जल्दी से इसे एक लाख स्वर्ण मुद्राए दे दोI"
मंत्री ने दूत को स्वर्ण मुद्राओं से भरी थैली दे दीI
कद्दू बोला -"अब जल्दी से चाँद दो, मैं और इंतज़ार नहीं कर सकताI"
"क्यों नहीं..यह लीजियेI" कहते हुए उसने अपनी जेब से चाँद की तस्वीर निकालकर दे दीI
कद्दू तस्वीर को देखते ही सिंहासन से उछल पड़ा और उसने गुस्से से पूछा - "चाँद कहाँ है?"
दूत हँसते हुए बोला- "महाराज, आप किसी से भी पूछ लीजिये कि ये क्या हैं?"
और दूत ने उस तस्वीर को भरे दरबार में दिखाते हुए पूछा- "यह क्या हैं?"
सभी दरबारियों ने एक ही स्वर में उत्तर दिया- "चाँद"
बेचारा कद्दू अपना सिर पकड़कर बैठ गयाI नाव से दूत की यह मक्कारी बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं हुईI
वह दूत से बोली-"मैं तुम्हें ढेर सारा ऊन दूँगी और अगर तुम मुझे उनमें से कुछ अच्छे स्वेटर बनवा कर दे दोगे तो ये राज्य तुम्हारा .. .."
यह सुनकर कद्दू गुस्से में गोल-गोल उछलने लगा और बोला-" ओह! क्यों मेरी दुश्मन बनी हुई हो? स्वेटर तो कोई भी बना देगाI"
नाव चीखी-"चुप रहो बेवकूफ़ राजा, वरना मैं वापस तुम्हारे सिर पे चढ़कर बैठ जाऊंगीI"
कद्दू अपने सिर पर हाथ फेरते हुए घबराकर चुप हो गयाI
नाव फ़िर से दूत की तरफ मुँह करके बोली- "पर अगर तुमने ऊन में से स्वेटर बनाकर नहीं दिया तो तुम्हारा पूरा राज्य हमाराI"
दूत नाव की इस मूर्खता भरी बात पर खुश होता हुआ बोला -"हाँ, मैं अपने राजा और स्वेटर बुनने वालो के साथ दो दिन बाद ही वापस आता हूँI"
दो दिन बाद ही पड़ोसी देश का राजा चतुरसेन बहुत ख़ुशी-ख़ुशी कद्दू के दरबार में कुछ लोगो के साथ आ पहुँचाI"
चतुरसेन बोला-"जल्दी से ऊन दो..ये लोग मिनटों में स्वेटर बुन देंगेI"
नाव ने कद्दू की ओर देखा और कद्दू ने मंत्री से कहा -"जाओ, जल्दी से ऊन लेकर आओI"
थोड़ी ही देर में वहाँ ढेर सारी भेड़े मिमियाती हुई यहाँ वहाँ घूम रहीथीI
नाव इतरा कर बोली -"अब तुम इनके ऊन से स्वेटर बनाओI"
राजा के साथ-साथ सभी का मुहँ अचरज से खुला रह गयाI
राजा गुस्से से बोला- "जब तक भेड़ो से ऊन अलग करके निकाली नहीं जायेगी,ये कैसे सम्भव हैं?"
कद्दू ने मुस्कुराते हुए चतुरसेन की ओर देखा और एक भेड़ की ऊन पकड़कर बोला-"ये क्या हैं?"
सबने एक स्वर में उत्तर दिया -"ऊन "
अब तो राजा को घबराहट के मारे पसीना आ गया
वो तुरंत कद्दू के पैरों में गिर पड़ा और बोला- "मुझे माफ़ कर दोI अब मैं तुम्हें तो क्या ,कभी किसी और भी कभी मूर्ख नहीं बनाऊँगाI"
कद्दू बोला- "मुझे तुम्हारा राज्य नहीं चाहिएI तुम जाओI"
नाव अपनी पतली कमर मटका कर बोली- "पर वो हमारी एक लाख स्वर्ण मुद्राए तो वापस कर दो, जो तुमने आसमान से चाँद उतार कर ली थीI"
"मैं अपने राज्य पहुँचकर दो लाख स्वर्ण मुद्राए भिजवाता हूँI" राजा मुस्कुराते हुए बोला और चला गया
नाव बोली -"अब तुम समझदार हो गए हो, इसलिए मैं भी चलती हूँI"
कद्दू बोला-"अगर तुम चली गई तो मैं दुबारा से तोतो का पेड़ बोऊँगाI"
यह सुनते ही नाव जोरो से हँस पड़ी और उसके बाद कद्दू अपनी सबसे प्यारी दोस्त, नाव के साथ मिलकर अपना शासन सुचारु रूप से चलाने लगा ...और हाँ..अब वो ना कहना सीख गया थाI
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