आज के पंजाब केसरी में मेरी कहानी "चींचीं चुहिया का इंटरनेट" पूरे घर में चींचीं चुहिया सरपट दौड़ रही थीI इतनी तेज रेस लगाने के बाद भी वह रीना से आगे नहीं निकल पा रही थीI उधर रीना एक हाथ में डंडा लिए चिल्ला रही थी-“आज इस चुहिया का इस घर में आख़िरी दिन हैI” चींचीं डर से काँपते हुए बोली-“डंडा लेकर दौड़ा रही हो, ये क्या कम है जो साथ साथ रन्निंग कमेंट्री भी चालू हैI” तभी दरवाज़े की घंटी बजीI एक पल के लिए रीना का ध्यान हटा कि चींची सीधा अपने बिल में… रीना ने सोफ़े के नीचे से लेकर कुर्सी के पाएँ तक को उठाकर देख लिया, पर सब बेकार रीना गुस्से से पैर पटकती हुई दरवाज़ा खोलने के लिए चल दी और उधर चींचीं अपने बिल में, आराम से बैठे हुए, पँखा चलाकर शरबत की चुस्कियाँ ले रही थीI सामने उसके तीनों बच्चे बिल्लू, सिल्लू और टिल्लू बैठे हुए उसे देख रहे थेI बिल्लू बोला-"आपको हमारे कारण बहुत मेहनत करनी पड़ती हैI" "हाँ, मैंने झाँककर देखा था कि आज तो आपको रीना आंटी बस पकड़ने ही वाली थी, वो तो दरवाज़े की घंटी बज गई तो आप बच गईI" "अब आप कल से मत परेशान होनाI हम बिना इंटरनेट के भी तो पढ़ा...
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