
बाल किलकारी के अक्टूबर अंक में मेरी कहानी " रैम्बों और ऊन का गोला" रोज़ की तरह ख़ुशी अपने छोटे से सफ़ेद पप्पी, रैम्बों के साथ खेल रही थीI तभी उसके हाथ से गेंद छूट गई और लुढ़कती हुई दूर चली गईI ख़ुशी ने रैम्बों से कहा-"दौड़कर गेंद ले आओ, वरना हम खेल नहीं पाएँगेI" रैम्बों ने ख़ुशी से पूँछ हिलाई और बॉल की तरफ़ दौड़ पड़ाI ख़ुशी वहीँ घास पर बैठकर रैम्बों का इंतज़ार करने लगीI जब बहुत देर तक रैम्बों नहीं आया ,तो ख़ुशी को चिंता हुईI वह उस ओर चल पड़ी, जिधर रैम्बों दौड़ते हुए गया थाI थोड़ा ही आगे जाने पर उसे कूँ-कूँ की आवाज़ सुनाई पड़ीI ख़ुशी समझ गई कि वो आवाज़ रैम्बों की हैI वह पूरी ताकत लगाकर उस आवाज़ की दिशा में दौड़ी रैम्बों को देखते ही ख़ुशी आश्चर्यचकित रह गईI वह लाल रंग के ऊन में लिपटा हुआ पड़ा था और उसके बगल में ही एक लड़की खड़ी थीI "तुम कौन?" ख़ुशी ने उसे रैम्बों के पास खड़े देखकर पूछा "मेरा नाम मिनी हैI" "रैम्बों इतनी सारी ऊन में बुरी तरह लिपटकर गिरा पड़ा है, तुमने उसे उठाया क्यों नहीं?" ख़ुशी ने गुस्से से मिनी से पूछा "कैसे उठाती, अगर यह मुझे काट खाता तो......